Dharam
धर्म
धर्म किसे कहते हैं |
जब भी मैं अकेला बैठता हूँ, और सोचता हूँ की है " भगवान/God "तेरी इस श्रृष्टि का
क्या होग जहां तेरे दुवारा बनाया गया मनुष्य/human being ही एक दूसरे को
मारता है, आक्रोश करता है| आज तो मनुष्य इतना भी नहीं सोच सकता की इस
सारी श्रृष्टि में , इंसान/मनुष्य, जीव जन्तु, पशु, पक्षी, कीट-पतंग और वनस्पति को
बनाने/सीर्जन करने वाला तो एक ही है| फिर वह किसको मर रहा है क्यों
मर रहा है, क्या दुश्मनी, और क्या बैर है आपस मैं, उसका और जिसको वह
मर रहा हें| उन दोनों का पिता/सर्जन करता वही हें वे एक ऐसी शक्ति है जो
कि अदृशय है उसको कोई देख नही सकता, सभी उसकी संतान हें, यह
कैसी तेरी माया है | फिर जब भी इतिहासके पन्नों मै जाता हूँ | तो मेरी समझ
में इतना ही/यही आता है की महाभारत (Mahabharat) चाहें रामायण
(Ramayan) युग मै भी धर्म मार्ग नहीं अपनाया गया, अगर वहा कही धर्म आगे
रहता, धर्म के सही रास्तें पर चलने वाले होते तो शयद ये युध्द ही ना होते |
इस इतिहास मै और न जाये तो शयद सही होगा, कयोकि यह एक विचर करने
योग्य विषय है जिसको हम धर्मं कहतें हें |
यह धर्म क्या हें और किसे कहतें हें ?
धर्म के बहुत से अर्थ निकाले हें मनुष्य/human being ने चाहें वह हिन्दू धर्म, सनातन
धर्म, सिख धर्म, मुस्लिम या फिर क्रिस्टियन धर्म को मानने वाले हो या किसी और का,
कहते हें जिस में – कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचार,सद्गुण, धैर्य, क्षमा, निग्राह
( जो इन्द्रियों को अपने वश में रखने वाला हो), अस्तेय (चोरी ना करता हो) सत्य
(मन, वचन, कर्म से सत्य का पालन करता हो), क्रोध न करने वाला हो,अच्छे लोगों
की संगति करने वाला हो, नशे से दूर रहता हो, नशा चाहे कोई भी हो वह दौलत का
भी हो सकता हैं , कहते है जिस में इतने गुण होंगे वह धार्मिक परविरति का होगा,
उसको मनु जी ने धार्मिक व्यक्ति कहा हें|
धर्म को इंग्लिश / English में Religion , उर्दू में मज़हब कहते हें
----धर्म एक संस्कृत शब्द हें, धर्म बहुत व्यापक हें ध + र् + म = धर्म, धारण करना ,
किसने धारण करना " मैं,मैंने " यह "मैं " कौन है। .." मैं " मनुष्य /इंसान हूँ |
अब प्रशन उठता हें हमे क्या धारण करना हें, किन बातो को धारण करना हें, किन
रास्तो को धारण करना हें, जिस पर चल कर हम एक प्रगतिशील समाज की
स्थापना कर सकते हें| यह सब बाते और यह रास्तें, हमारे ग्रंथो, वेदों में लिखे हुए हें,
जैसे की मनुष्य के कर्तव्य क्या हें, अहिंसा और न्याय के रास्ते पर चलाना,
प्यार की भावना , सदाचार, सद्गुणों, धैर्य, क्षमा,सत्य के गुणों को
अपने में धारण करना और उन पर चलना, क्रोध,चोरी, नशे इन अवगुणों से दूर रहना ,
सब जीवो में अपने जैसी प्राण और आत्मा को महसुस करना और अपनी इन्दिर्यों
को अपने वश में रखना | जब यह सब बातो और रास्तों को हम धारण करेगें तब
एक साफ सुथरे धर्म का मनुष्य में जन्म होगा और ऐसे धर्म को धारण करने वाला
मनुष्य कभी भी किसी को नुकसान/हानि नहीं पंहुचा सकता हें | ऐसे गुणों वाला
मनुष्य/human तो केबल एक धार्मिक कहलयेगा |
धर्म – जीवन जीने की एक पद्धति का नाम हें | हर इन्सान के जीवन जीने की एक राह/
पद्धति होती हें | अगर हम ईश्वर/God को मानेगे तभी धार्मिक कहलाये जाओगे |
हमे ईश्वर/God को जानने और उस अदृश्य शक्ति / power को महसूस करने की
जरुरत हें न की मानने की | आज देखा जाये तो करीब/about 99% लोग/
व्यक्ति धार्मिक नहीं हें, भले ही वह अपने आप को सबसे बड़ा धार्मिक, ज्ञानी,
धर्म प्रचारक कहता हो | दूसरो के साथ वही व्यवाहर करो
जो अपने लिए भी पसंद हो| अगर हमारी सामाजिक व्यवस्था इस सूत्र को अपना
ले तो इस संसार में पूरी शांति आने को कोइ नहीं रोक सकता |
धर्म |
धर्म एक वृक्ष की तरह है जो इंसान को फल और छाया दोनों ही प्रदान करता है जिस
से जीवों का भला हो सके , लेकिन इस मानव ने उसी वृक्ष की जड़ों को काटना शुरू कर
दिया है , क्योकि धर्म ही है जो उस परमपिता परमात्मा से मिलने का एक रास्ता /
मार्ग है. एक समय / वक्त था जब यह मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे, शिवाल्लेय
इसलिए बनाये गये थे की हर इन्सान / मनुष्य वहां बैठकर उस परम शक्ति
परमात्माGod का ध्यान करते थे जिस से की उसकी अपनी और समाज की उन्नति हो
सके और तब होती भी थी, लोगों मे एकता और भाईचारा भी होता था |
लेकिन आज कल तो मनुष्य ने अपने लाभ/फयदे के लिये धर्म की परिभाषा ही बदल दी |
धर्म के नाम पर हर रोज दंगा फसाद , मारपीट, खून खराबा होता है, और तो और धर्म
के खजाने को खूब लूटा जाता है | धर्म के नाम पर राजनीती होती हें | इन मंदिर,
मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारों, को राजनीति के अखाड़े बना दिए गये हें | धर्म तो
चीख –चीख कर कह रहा हें.-- "ऐ इन्सान/मनुष्य अब भी सुधर जा", लेकिन ये
इन्सान इतनी जल्दी सुधरने वाला नहीं हें आज कल के वक्त/समय को देखकर
यही लगता है |
फिर मिलेंगे एक नये विचार के साथ
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